राम नवमी हिन्दू धर्म का एक अत्यंत पावन पर्व है, जो भगवान राम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग उपवास रखते हैं, विशेष पूजा-अर्चना होती है और सत्य की अधर्म पर विजय का संदेश मिलता है।
राम नवमी के व्रत की चारों जयन्तियों में गणना है, जो चैत्र शुक्ल नवमी को किया जाता है। इसमें मध्याह्नव्यापिनी शुद्धा तिथि ली जाती है। यदि वह दो दिन मध्याह्नह्मव्यापिनी हो या दोनों दिनों में ही न हो तो पहला व्रत करना चाहिये।
इस दिन भगवान रामचंद्र का जन्म हुआ था, जो चैत्र शुक्ल नवमी, गुरुवार, पुष्य (या दूसरे मतसे पुनर्वसु), मध्याह्न और कर्क लग्न था। उत्सव के दिन ये सब तो सदैव आ नहीं सकते, परंतु जन्मक्ष कई बार आ जाता है; अतः वह हो तो उसे अवश्य लेना चाहिये।
राम नवमी का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व यह दिन अयोध्या में राजा दशरथ के घर भगवान विष्णु के सातवें अवतार श्रीराम के जन्म की खुशी में मनाया जाता है। श्रीराम को “मर्यादा पुरुषोत्तम” कहा जाता है। इस दिन सत्य, प्रेम, त्याग और सेवा की भावना को अपनाने का संकल्प लेना अत्यंत शुभ माना जाता है।
अयोध्या सहित देशभर के राम मंदिरों में भव्य झांकी, शोभायात्रा और भजन-कीर्तन होते हैं। लोग भगवान राम की पूजा-अर्चना करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं।
राम नवमी के अवसर पर लोग अपने घरों में भी पूजा-अर्चना करते हैं और भगवान राम की भक्ति में लीन रहते हैं। इस दिन का महत्व इस बात में है कि यह हमें सत्य, प्रेम और त्याग की भावना को अपनाने के लिए प्रेरित करता है।