सागर (मध्यप्रदेश)। बुंदेलखंड अंचल के सागर शहर के इतवारा बाजार में स्थित उत्तरमुखी सरस्वती मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है। बसंत पंचमी के अवसर पर यहां मां सरस्वती की पूजा-अर्चना करने हजारों भक्त जुटते हैं। मंदिर की खासियत यह है कि यहां मां सरस्वती को लड्डू-पेड़ा नहीं, बल्कि पैन और कॉपी चढ़ाने की परंपरा है।
1971 में हुई थी प्राण प्रतिष्ठा
मंदिर के पुजारी पंडित यशोवर्धन चौबे बताते हैं कि उनके पिता प्रभाकर चौबे ने वर्ष 1962 में बरगद का पेड़ लगाकर इस मंदिर के निर्माण की शुरुआत की थी। स्थानीय लोगों के सहयोग से वर्ष 1971 में मंदिर बनकर तैयार हुआ और तत्कालीन सांसद मनिभाई पटेल के सहयोग से मां सरस्वती की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की गई। यह उत्तरमुखी प्रतिमा का एकलौता मंदिर है, जो इसे और खास बनाता है।
उत्तरमुखी मंदिर का महत्व
पंडित यशोवर्धन चौबे के अनुसार, उत्तर दिशा को ज्ञान और बुद्धि की दिशा माना गया है, इसलिए यहां मां सरस्वती की प्रतिमा उत्तरमुखी स्थापित की गई है। ऐसी मान्यता है कि वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती प्रकट हुई थीं, इसलिए इस दिन विशेष रूप से उनकी पूजा-अर्चना की जाती है।
108 बादाम और मखाने की माला चढ़ाने की परंपरा
मंदिर में विशेष धार्मिक परंपराएं निभाई जाती हैं। मान्यता है कि यदि किसी की शादी में बाधा आ रही हो, तो 108 बादाम की माला मां को चढ़ाने से समस्या दूर होती है। वहीं, विद्यार्थी अपनी पढ़ाई में सफलता के लिए 108 मखाने की माला अर्पित करते हैं। यह माला सूर्यास्त से पहले चढ़ाई जाती है।
अनार की लकड़ी से जीभ पर उकेरा जाता है ‘ॐ’
बसंत पंचमी के अवसर पर मंदिर में विशेष संस्कार आयोजित किए जाते हैं। इनमें अक्षरारंभ संस्कार के तहत छोटे बच्चों की जीभ के अग्रभाग पर शहद और अनार की लकड़ी से ‘ॐ’ की आकृति उकेरी जाती है, जिससे बच्चा ज्ञानवान बने।
संस्कारों का विशेष आयोजन
इस अवसर पर सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच 14 संस्कार संपन्न कराए जाते हैं, जिनमें सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, अन्नप्राशन, नामकरण, निष्क्रमण, चूड़ाकर्म, विद्यारंभ, कर्णवेध, यज्ञोपवीत, वेदारंभ, केशांत और समावर्तन संस्कार शामिल हैं। ये सभी संस्कार धार्मिक विधियों और ग्रंथों के अनुसार संपन्न होते हैं।
बसंत पंचमी के दिन इस मंदिर में भव्य आयोजन होते हैं और श्रद्धालु यहां पहुंचकर मां सरस्वती का आशी
र्वाद प्राप्त करते हैं।