गौरीदंत धाम: रहस्यमयी गुफा और प्राचीन इतिहास का प्रतीक

रहली। सिद्ध क्षेत्र रानगिर से जंगल की ओर लगभग 5 किलोमीटर दूर दक्षिण वन मंडल परिक्षेत्र में प्रकृति की गोद में स्थित है प्रसिद्ध धार्मिक स्थल गौरीदंत धाम। यह स्थान अपनी ऐतिहासिकता और धार्मिक महत्ता के लिए प्रसिद्ध है। यहां मां गौरी की पाषाण प्रतिमा लगभग सात सौ फीट ऊंची पहाड़ी पर विराजमान है।

 

मंदिर के आसपास ऐतिहासिक शिलालेख

 

दुर्गम रास्ता होने के बावजूद यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मंदिर के आसपास मौजूद प्राचीन शिलालेख इतिहासकारों के लिए शोध का विषय बने हुए हैं। इन्हें देखकर यह स्पष्ट होता है कि यह क्षेत्र काफी प्राचीन है।

 

कैसे पड़ा गौरीदंत नाम?

 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब माता पार्वती ने सती रूप में अपने प्राण त्यागे, तो भगवान शंकर उनके शव को लेकर तीनों लोकों में घूमते रहे। शिव के शोक को देखकर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र चलाकर माता के शरीर को खंड-खंड कर दिया। कहा जाता है कि माता के शरीर का एक दांत इस स्थान पर गिरा, जिसे गौरीदंत कहा जाने लगा। आज यह स्थान शक्ति पीठ के रूप में प्रसिद्ध है, जहां साधकों को आध्यात्मिक अनुभूति प्राप्त होती है।

 

रहस्यमयी गुफा और बौद्ध स्तूप

 

गौरीदंत की पहाड़ी पर मंदिर के सामने एक रहस्यमयी गुफा स्थित है। इस गुफा में प्रवेश के लिए लोहे की दो सीढ़ियां लगाई गई हैं, लेकिन आज भी यह गुफा एक अबूझ पहेली बनी हुई है। मंदिर परिसर में हनुमान जी की प्रतिमा भी स्थापित है, जिसके पास से एक संकरा रास्ता नीचे की ओर जाता है। ग्रामीणों के अनुसार, इस गुफा में जो भी अंदर जाने की कोशिश करता है, वह कभी लौटकर नहीं आया।

 

गुफा में मार्कण्डेय मुनि की तपस्या

 

मान्यता है कि इस गुफा में महर्षि मार्कण्डेय ने कठोर तपस्या की थी। गुफा के अंदर माता रानी की अदृश्य प्रतिमा स्थापित होने की भी मान्यता है। इसके अलावा, पहाड़ी के ऊपर बौद्ध स्तूप और पाली लिपि में शिलालेख भी मौजूद हैं। मंदिर के पीछे कामदेव और रति की प्रतिमाएं स्थापित हैं, जो इस क्षेत्र की ऐतिहासिकता को प्रमाणित करती हैं।

 

धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकास की जरूरत

 

गौरीदंत सिद्ध क्षेत्र एक अद्भुत धार्मिक एवं ऐतिहासिक धरोहर है। यदि इस क्षेत्र का उचित विकास किया जाए, तो यह एक प्रमुख धार्मिक पर्यटक स्थल बन सकता है। प्रशासन और पुरातत्व विभाग द्वारा इस क्षेत्र पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है, जिससे इसकी धार्मिक, ऐतिहासिक और पर्यटन दृष्टि से पहचान और अधिक मजबूत हो सके।

 

 

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